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498A मे अब 2 महिने तक नही होगी गिरफ्तारी

धारा 498A FIR में अब 2 महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी !




सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों का समर्थन किया है। अब सभी मामले पहले फैमिली वेलफेयर कमेटी को भेजे जाएंगे।

धारा 498A का दुरुपयोग रोकने के लिए नए दिशा-निर्देश
2 महीने का "कूलिंग पीरियड"
FIR दर्ज होने के बाद 2 महीने तक कोई गिरफ्तारी नहीं होगी। इस दौरान मामला फैमिली वेलफेयर कमेटी को भेजा जाएगा।

कमेटी की भूमिका
कमेटी दोनों पक्षों से मिलकर विवाद सुलझाने का प्रयास | करेगी और मजिस्ट्रेट को विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगी।

फैमिली वेलफेयर कमेटी का गठन

• हर जिले में कम से कम एक कमेटी होगी जिसमें तीन सदस्य शामिल होंगे।
• जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा समय-समय पर समीक्षा की जाएगी।
• कमेटी के सदस्यों को गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा।

कमेटी के सदस्य कौन हो सकते हैं?
युवा मध्यस्थ, 5 साल तक के अनुभव वाले वकील या कानून के वरिष्ठ छात्र
प्रतिष्ठित और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता
सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी
वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां

कमेटी का कार्य प्रणाली
बैठक आयोजन
कमेटी विवादित पक्षों और उनके चार वरिष्ठ बुजुर्ग सदस्यों को बुलाएगी।
विचार-विमर्श
दो महीने के भीतर मुद्दों और गलतफहमियों को सुलझाने का प्रयास किया जाएगा।
रिपोर्ट तैयारी
कमेटी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके संबंधित मजिस्ट्रेट/पुलिस को भेजेगी।

जांच प्रक्रिया में बदलाव
1 कूलिंग पीरियड के दौरान
पुलिस अधिकारी नामित आरोपियों की गिरफ्तारी या कोई जबरदस्ती कार्रवाई से बचेंगे।
2 सीमित जांच
जांच अधिकारी परिधीय जांच जारी रखेंगे - मेडिकल रिपोर्ट, चोट रिपोर्ट, गवाहों के बयान।
3 कूलिंग पीरियड के बाद
कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर CrPC के अनुसार
उचित कार्रवाई की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
मुख्य न्यायाधीश BR गवई और न्यायमूर्ति AG मसीह की बेंच ने शिवांगी बंसल बनाम साहिब बंसल मामले में इन दिशानिर्देशों का समर्थन किया है।
अदालत ने पाया कि पति और उनके परिवार पर पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए झूठे मामलों के कारण पति को 109 दिन और उनके पिता को 103 दिन जेल में रहना पड़ा।

दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने उठाया बड़ा कदम

देशभर में ये गाइडलाइन लागू करने के आदेश-
दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं.

वैवाहिक विवादों में IPC की धारा 498 A यानी दहेज प्रताड़ना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है. दहेज प्रताड़ना के दुरुपयोग को रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2022 के दिशानिर्देशों को पूरे देश में लागू करने के आदेश दिए गए हैं. 498A मामलो में दो महीने तक गिरफ्तारी ना करने और परिवार कल्याण समितियों के गठन के हाईकोर्ट दिशानिर्देशों का समर्थन किया है. CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने फैसले में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए.

पीठ ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 13.06.2022 के फैसले में पैरा 32 से 38 के अनुसार, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग से संबंधित सुरक्षा उपायों के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' के संबंध में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाएगा. दरअसल इस फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि 2018 में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मार्गदर्शन प्राप्त करते हुए दिशानिर्देश जारी कर रहा है. इसका उद्देश्य वादियों में पति और उसके पूरे परिवार को व्यापक आरोपों के माध्यम से फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना है.

हाईकोर्ट के दिशानिर्देश थे 
(1) FIR या शिकायत दर्ज होने के बाद, "कूलिंग पीरियड" (जो FIR या शिकायत दर्ज होने के दो महीने बाद है) समाप्त हुए बिना, नामित अभियुक्तों की गिरफ्तारी या उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस कार्रवाई नहीं की जाएगी..इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामला प्रत्येक जिले में तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा.

(2) केवल वे मामले परिवार कल्याण समिति को भेजे जाएंगे जिनमें धारा 498-ए, अन्य धाराओं के साथ-साथ कारावास की सजा 10 साल से कम हो.

(3) शिकायत या FIR दर्ज होने के बाद दो महीने का "कूलिंग पीरियड" समाप्त हुए बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए. इस "कूलिंग पीरियड" के दौरान, मामले को प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति को भेजा जा सकता है. 

(4) प्रत्येक जिले में कम से कम एक या एक से अधिक परिवार कल्याण समिति (जिला विधिक सहायता सेवा प्राधिकरण के अंतर्गत गठित उस जिले के भौगोलिक आकार और जनसंख्या के आधार पर) होगी, जिसमें कम से कम तीन सदस्य होंगे.. इसके गठन और कार्यों की समीक्षा उस जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश/प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट द्वारा समय-समय पर की जाएगी, जो विधिक सेवा प्राधिकरण में उस जिले के अध्यक्ष या सह-अध्यक्ष होंगे.

(5) उक्त परिवार कल्याण समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:-

(ए ) जिले के मध्यस्थता केंद्र से एक युवा मध्यस्थ या पांच वर्ष तक का अनुभव रखने वाला युवा वकील या राजकीय विधि महाविद्यालय या राज्य विश्वविद्यालय या राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय का पाँचवें वर्ष का वरिष्ठतम छात्र.. अच्छा शैक्षणिक रिकॉर्ड रखने वाला और लोक-हितैषी युवक, या

(बी) उस जिले का सुप्रसिद्ध और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता, जिसका पूर्व-पारिवारिक इतिहास साफ़-सुथरा हो, या;

(सी) जिले में या उसके आस-पास रहने वाले सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, जो कार्यवाही के उद्देश्य के लिए समय दे सकें, या;
 (डी) जिले के वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां 

(6) परिवार कल्याण समिति के सदस्य को कभी भी गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा 

(7) भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और ऊपर उल्लिखित अन्य संबद्ध धाराओं के अंतर्गत प्रत्येक शिकायत या आवेदन, संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत परिवार कल्याण समिति को भेजा जाएगा.. उक्त शिकायत या FIR प्राप्त होने के बाद, समिति प्रतिवादी पक्षों को उनके चार वरिष्ठ व्यक्तियों के साथ व्यक्तिगत बातचीत के लिए बुलाएगी और दर्ज होने के दो महीने के भीतर उनके बीच के विवाद/शंकाओं को सुलझाने का प्रयास करेगी. प्रतिवादी पक्षों को समिति के सदस्यों की सहायता से अपने बीच गंभीर विचार-विमर्श के लिए अपने चार वरिष्ठ व्यक्तियों (अधिकतम) के साथ समिति के समक्ष उपस्थित होना अनिवार्य है.

(8) समिति उचित विचार-विमर्श के बाद, एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी और मामले से संबंधित सभी तथ्यात्मक पहलुओं और अपनी राय को शामिल करते हुए, दो महीने की अवधि समाप्त होने के बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट/पुलिस अधिकारियों को, जिनके समक्ष ऐसी शिकायतें दर्ज की जा रही हैं, भेजेगी.

(9) पुलिस अधिकारी, नामित अभियुक्तों के विरुद्ध आवेदनों या शिकायतों के आधार पर किसी भी गिरफ्तारी या किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचने के लिए, समिति के समक्ष विचार-विमर्श जारी रखेंगे. हालांकि, जांच अधिकारी मामले की परिधीय जाँच जारी रखेंगे, जैसे कि मेडिकल रिपोर्ट, चोट रिपोर्ट और गवाहों के बयान तैयार करना.

(10) समिति द्वारा दी गई उक्त रिपोर्ट, गुण-दोष के आधार पर, जांच अधिकारी या मजिस्ट्रेट के विचाराधीन होगी और उसके बाद दो महीने की " कूलिंग अवधि" समाप्त होने के बाद, दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुसार उनके द्वारा उचित कार्रवाई की जाएगी 

(11) विधिक सेवा सहायता समिति, परिवार कल्याण समिति के सदस्यों को समय-समय पर आवश्यक समझे जाने वाले बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करेगी. 

(12) चूंकि,यह समाज में व्याप्त उन कटुताओं को दूर करने का एक नेक कार्य है जहां प्रतिवादी पक्षों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं ताकि वे अपने बीच की गर्माहट को कम कर सकें और उनके बीच की गलतफहमियों को दूर करने का प्रयास कर सकें चूंकि यह कार्य व्यापक रूप से जनता के लिए है, सामाजिक कार्य है, इसलिए वे प्रत्येक जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानदेय या निशुल्क आधार पर कार्य कर रहे हैं. 

(13) भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और अन्य संबद्ध धाराओं से संबंधित ऐसी FIR या शिकायतों की जांच, गतिशील जांच अधिकारियों द्वारा की जाएगी, जिनकी निष्ठा, ऐसे वैवाहिक मामलों को पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ संभालने और जांच करने के लिए कम से कम एक सप्ताह के विशेष प्रशिक्षण के बाद प्रमाणित हो. 

(14) जब पक्षों के बीच समझौता हो जाता है तो जिला एवं सत्र न्यायाधीश और उनके द्वारा जिले में नामित अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी आपराधिक मामले को बंद करने सहित कार्यवाही का निपटारा करने के लिए स्वतंत्र होंगे. दरअसल मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने उस वैवाहिक मामले में फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट के सुरक्षा उपायों का समर्थन किया है, जिसमें पत्नी और उसके परिवार ने पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कराए थे, जिसके कारण पति और उसके पिता को जेल की सजा हुई थी.

क्या आपके लिए है यह महत्वपूर्ण?
धारा 498A के तहत दर्ज मामलों में यह नए दिशा-निर्देश पारिवारिक विवादों को सुलझाने और झूठे मामलों से बचाव में महत्वपूर्ण साबित होंगे।

अगर आप या आपका कोई परिचित इस तरह के मामले से जूझ रहे हैं, तो इस पोस्ट को उनके साथ शेयर करें कानूनी विशेषज्ञ से परामर्श लें।
Adv. KR Choudhary

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